MINISTER OF STATE FOR LABOUR AND EMPLOYMENT (SHRI RAMESWAR TELI)

 MINISTER OF STATE FOR LABOUR AND EMPLOYMENT (SHRI RAMESWAR TELI)

(a) to (f): The Section 3(1) (b) of the Minimum Wages Act, 1948, mandates the Central Government and the State Governments to review the minimum rates of wages so fixed in the scheduled employments in their respective jurisdiction at intervals not exceeding five years and revise the minimum rates, if necessary. Recently, the provisions of the Minimum Wages Act, 1948, have been rationalized and amalgamated in the Code on Wages Act, 2019, passed by the Parliament and notified on 08.08.2019. Section 8(4) of the Code stipulates that the appropriate Government shall review or revise minimum rates of wages ordinarily at an interval not exceeding five years.

Government have taken measures for monitoring of compliance in respect of minimum wages rate, such as publicity of minimum rates of wages in the Chief Labour Commissioner (CLC) websites, display of minimum rates of wages by contractors at work sites/places, display of minimum rates of wages by principal employers in their websites.

Besides above, regular inspections are conducted in the establishments under central sphere under Minimum Wages Act, 1948 by the organizations of Central Industrial Relations Machinery (CIRM) under the CLC(C). Special emphasis is given to the complaints received against any establishment. On finding any less payment of wages to workers, claim application is filed before the authority appointed to hear and decide the claim. As per the provision of Section 20(2) of the Act, such claim can also be filed by the employee himself, or any legal practitioner or any official of registered trade union on behalf of the worker/s.

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भारत सरकार
श्रम और रोजगार मंत्रालय
लोक सभा
अतारांकित प्रश्न संख्या 61
सोमवार, 04 दिसम्बर, 2023/13 अग्रहायण, 1945 (शक)

सांविधिक न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए एक समान पद्धति

61. डॉ. बीसेट्टी वेंकट सत्यवती:
क्या श्रम और रोजगार मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि:

(क) क्या सरकार ने (एक) नेशनल फ्लोर लेवल और (दो) विभिन्‍न राज्यों के लिए सांविधिक न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए एक स्पष्ट समान पद्धति निर्धारित करने हेतु कोई उपाय किए हैं;

(ख) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं;

(ग) क्या सरकार की न्यूनतम मजदूरी में संशोधन अथवा समीक्षा की अवधि, जो वर्तमान में पांच वर्ष है, को संशोधित या समीक्षा करने की कोई योजना है;

(घ) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं;

(ड) क्‍या सरकार ने न्यूनतम मजदूरी दरों के अनुपालन के संबंध में निगरानी जैसे कि दरों के व्यापक उल्लंघन को ध्यान में रखते हुए निरीक्षण प्रक्रिया में ट्रेड यूनियनों की भूमिका को सुदृढ़ करने के लिए कोई तंत्र बनाया है; और

(च) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं?

उत्तर

श्रम और रोजगार राज्य मंत्री
(श्री रामेश्वर तेली)

(क) से (च): न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 की धारा 3(1)(ख) केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को यह अधिदेशित करती है कि वे अपने-अपने क्षेत्राधिकार में अनुसूचित नियोजनों में इस प्रकार निर्धारित मजदूरी की न्यूनतम दरों की पांच वर्ष से अधिक के अंतराल पर समीक्षा करें और यदि आवश्यक हो तो न्यूनतम दरों में संशोधन करें। हाल ही में, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के प्रावधानों को तर्कसंगत बनाया गया है और संसद द्वारा पारित और दिनांक 08.08.2019 को अधिसूचित मजदूरी संहिता अधिनियम, 2019 में समामेलित किया गया है। संहिता की धारा 8(4) में यह निर्धारित किया गया है कि उपयुक्त सरकार मजदूरी की न्यूनतम दरों की सामान्यत पांच वर्ष से अधिक के अंतराल पर समीक्षा या संशोधन करेगी।

सरकार ने न्यूनतम मजदूरी दर के संबंध में अनुपालन की निगरानी हेतु मुख्य श्रम आयुक्त (सीएलसी) की वेबसाइटों में मजदूरी की न्यूनतम दरों का प्रचार, कार्य स्थलों/स्थानों पर ठेकेदारों दवारा मजदूरी की न्यूनतम दरों का प्रदर्शन, प्रमुख नियोक्ताओं द्वारा अपनी वेबसाइटों में मजदूरी की न्यूनतम दरों का प्रदर्शन जैसे उपाय किए हैं।

उपर्युक्त के अतिरिक्त, मुख्य श्रम आयुक्त (के.) के अंतर्गत केन्द्रीय औद्योगिक संबंध मशीनरी (सीआईआरएम) के संगठन द्वारा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत केन्द्रीय क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में नियमित निरीक्षण किए जाते हैं। किसी भी प्रतिष्ठान के खिलाफ प्राप्त शिकायतों पर विशेष जोर दिया जाता है। कामगारों को मजदूरी का कम भुगतान करने का पता चलने पर, दावे की सुनवाई और निर्णय करने के लिए नियुक्त प्राधिकरण के समक्ष दावा आवेदन दायर किया जाता है। अधिनियम की धारा 20 (2) के उपबंध के अनुसार, इस तरह का दावा स्वयं कर्मचारी द्वारा या किसी कानूनी व्यवसायी या पंजीकृत ट्रेड यूनियन के किसी भी अधिकारी द्वारा कामगारों की ओर से दायर किया जा सकता है।

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