हम सरकार से भीख नहीं मांग रहे

“मैंने इस देश के लिए 33 साल तक सेवा की…
हर फाइल, हर नीतिगत निर्णय में जनहित ही प्राथमिकता रही…
हर आदेश, हर जिम्मेदारी को अपना कर्तव्य समझ कर निभाया…
कभी स्वार्थ नहीं सोचा, क्योंकि मैं ‘सिविल सेवक’ था।”

“आज जब मैं सेवा से निवृत्त हूँ…
तो ऐसा लगता है जैसे सिस्टम ने मुझे भुला दिया है।
मेरे अनुभव, मेरी निष्ठा… सब बेकार हो गए हैं।”

“मेरे जैसे लाखों पेंशनभोगियों की आवाज़ आज अनसुनी की जा रही है…
हमने संविधान के अनुसार काम किया,
पर अब संविधान की आत्मा को ही चोट पहुंचाई जा रही है।”
“D.S. Nakara judgment ने हमें एक समानता दी थी—
कहा था कि पेंशन कोई दया नहीं, यह हमारा अधिकार है।
सेवानिवृत्त होने की तिथि से किसी को विभाजित नहीं किया जा सकता।
हम सब एक समान हैं   यही न्याय है।
“लेकिन Finance Act 2025 में जो प्रावधान आए…
उन्होंने हमें फिर टुकड़ों में बांट दिया।
सरकार को यह अधिकार दे दिया कि वो पेंशनरों में भेद करे।
क्या यह Nakara के फैसले का अपमान नहीं है?”
“कभी कहा गया—‘अमृतकाल’ है…
पर हमारे लिए ये ‘अनदेखी का काल’ बन गया है।
जिन्होंने पूरी सेवा-आवधि देश के विकास में लगा दी…
आज उनके सवालों का जवाब कोई नहीं दे रहा।
*“क्या यही है अमृतकाल?
क्या वृद्ध सिविल सेवकों के लिए यही न्याय है?”
“क्या Nakara judgment अब सिर्फ इतिहास की किताबों के लिए बचा है?”

“हम संविधान की रक्षा में खड़े थे…
आज भी खड़े हैं…
पर जब वही संविधान हमें नहीं बचा पा रहा…
तो पीड़ा होती है… बहुत गहरी पीड़ा।”
“हम सरकार से भीख नहीं मांग रहे…
हम अपना वैधानिक अधिकार मांग रहे हैं।
अगर हमारी बात नहीं, तो हमारा वोट नहीं।”

“Nakara judgment का अपमान,
संविधान का अपमान है।”

“वृद्ध सिविल सेवक अब चुप नहीं रहेंगे…
अब न्याय की आवाज़ हर मंच से उठेगी।
सुनिए… समझिए… और सुधरिए।”
“हमारी आवाज़ दबेगी नहीं…
हमारा हक़ झुकेगा नहीं…
यह लड़ाई सिर्फ पेंशन की नहीं—संविधान की गरिमा की है।”

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